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Illustration by @luciesalgado
वह उड़ना चाहती थी, जीना चाहती थी,बहुत कुछ करना चाहती थी,
परंतु समाज के खौफ से वह कुछ ना कह पाती थी।
उम्मीद लगाए बैठी थी , कि अपने जीवन को खुद अपनी मर्ज़ी से जिएगी,
पर उस पागल को क्या पता था कि इस तरह वह खुद अपने हाथो से अपनी फासी के फंदे को सीएगी।
वह सजना चाहती थी ,संवरना चाहती थी, पढ़ना भी चाहती थी,
पर हाए उसकी चाहत हकीकत के दरमियान में मर जाती थी।
क्यों उसके चरित्र का भान, उसकी कपड़ों की लंबाई से करते हो,
क्यों उनके सपनों को तुम यू सम्मान ना करते हो?
क्यों उसके जीवन को तुम अपने तराजू में तोलते हो?
क्यों उसके स्वाभिमान को तुम मजाक समझते हो?
किसने दिया हक तुम्हे उसके बारे में कुछ भी कहने का,
किसकी इजाजत से तुमने उसके आत्मसम्मान को मिटा डाला?
कमजोर वो नहीं तुम्हारे दक्यिनुसी ख्याल है,
बत्तमिज वो नहीं तुम और तुम्हारे सवाल है।
कह दो ना कि खौफ खाते हो ,उसके आत्मविश्वास से,
कह दो ना डर लगता है तुम्हे उसके हर सांस से।
चंडी है वो, कली है वो, है पाप नशिनी।
विहग चाल से चलने वाली है वो अद्भुत विश्वनी।
सम्मान करो, आदर करो,श्रृष्टि की संचालक है वो,
प्रेम रस से झलकती हुई नन्ही से बालक है वो।
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Part of the Society collection
Updated on July 26, 2022
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