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Illustration by @luciesalgado

इक परिंदे का दिव्य प्रेम

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इक परिंदा बहुत उत्सुक और नादान नज़र से आसमान की तरफ देख रहा था।

उसके पंखों में  बिजली सी तेज थी , वो क्षण में आसमान में तो कभी जमीं पर आ जाता था।

उसकी निगाहें हवा के वेग सा तिव्र था,और मन इक छोटे बच्चे की तरह मासुम , ना कोई खोट ,ना ही कोई अहम बस अपने ही धुन में मगन रहता था।

अपने मुस्कान से सबको मोहित कर लेता था।

वो हर परिंदे का बिना किसी स्वार्थ के मदद भी करता था,कई बार उसके इस रवैए का सभी बहुत फायदा उठाते थे।पर सब जानते हुए भी वो सबका ख्याल रखता था।

हर कोई जब कोई अपनी समस्या लेकर उसके पास जाता बिना संकोच के उसका निवारण कर देता।

परिवार में भी लोग अपनी सारी समस्या उसे ही बताते थे और उनके लिए अपना तन मन धन सब समर्पित कर देता था।

इक बार परिवार के कहने पर दाने के लिए परदेश को निकला,भोला मन , मासूम सी छवि , और अपने परिवार के उम्मीद के लिए दाने की तलाश में अपने देश से बहुत दूर इक शहर में आया।

और दाने की तलाश में जुट गया,शहर में कुछ वक्त बिताने के बाद उसको उसका गांव बहुत याद आने लगा, कभी -कभी अकेले में बहुत रोता ,पर अपने परिवार के उम्मीद के लिए वो सब सह जाता।

वैसे तो हजारों परिंदे थे इस शहर में पर सब मतलबी किस्म के थे, कोई इन्सानियत नहीं हर कोई अपने आप में व्यस्त था,इस कारण अकेले पन की आग और इसे और जलाती थी।

हमेशा हंसमुख सा रहने वाला परिंदा बहुत मायुस रहने लगा, चिंता में कमजोर हो गया , फिर भी परिवार के लिए दाने की उम्मीद में फिर भी भूखा प्यासा इस बेगाने शहर में भटकने लगा।

इक बार उसने इक खुबसूरत चिड़िया को देखा ,वो चिड़िया सुन्दर होने के साथ-साथ दिल की भी बहुत अच्छी थी , वो उसके पास आयी और  अपने हिस्से का इक दाना उस परिंदे के पास छोड़ गयी। परिंदा उसे देख बहुत खुश हुआ। और उस चिड़िया से धीरे- धीरे बातें करने लगा। चिड़िया भी उसके व्यवहार  को पसंद करने  लगी,उसे अजान परदेश में  चिड़िया के रूप में इक अच्छा दोस्त मिल गया।

अब हर रोज जब कभी उसे वो चिड़िया दिखती वो उसे देखने के लिए उड़ जाता,वह चिड़िया भी और परिंदों की तरह उससे भागती नहीं थी। वो उसके साथ हवा में अठखेलियां करती थी, परिंदा हमेशा उसके इर्द- गिर्द इक उत्सुक मन से चक्कर लगाता,और हर वक्त उससे अपनी सारी बातें करता है ।इक दिन चिड़िया को आसमान में बहुत खूबसूरत सी हवा के साथ लहराती हुई कोई चीज दिखी ,उसे देखने के चाह में वो दोनों उड़े और उसके पास गये , वहां इक खुबसूरत पतंग थी ,जो हवा में लहरा रही थी।

चिड़िया उसे देख कर खुशी से झूम उठती है,चंचल मन से उस पतंग को पाने की ख्वाहिश करती है।

परिंदा उसकी बातों को गौर से सुनता है और मन ही मन उस उड़ती चीज को चिड़िया को देने का वादा करता है।

चिड़िया परिंदे का इक अच्छे दोस्त की तरह ख्याल करती थी। उससे हर बातें  साझा करती थी।

परिंदा उससे अपनी हर परेशानी बताया करता था,और चिड़िया की सारी बातें ध्यान से सुनता था,वह उसे पाकर बहुत खुश था।

कहीं ना कहीं उसे उस  चिड़िया से प्रेम  हो जाता है,और अपना तन मन सब अन्तर्मन से उसे दे देता है।वह अपने प्रेम को अभिव्यक्त कैसे करे इसके बारे में हर वक्त सोचता रहता है।

जब कोई बहुत प्रेम अभिव्यक्त करता हैं तो अक्सर उस पर कैसे प्रतिक्रिया करना या आभार व्यक्त करना आपको समझ में नहीं आता। सच्चे प्रेम को पाने की क्षमता प्रेम को देने या बाँटने से आती है। जितना आप अधिक केंद्रित होते हे उतना अपने अनुभव के आधार पर यह समझ पाते हैं कि प्रेम सिर्फ एक भावना नहीं हैं, वह आपका शाश्वत आस्तित्व है, फिर चाहे कितना भी प्रेम किसी भी रूप में अभिव्यक्त किया जाए आप अपने आप को स्वयं में पाते है।

वो नहीं जानता कि वह खुबसूरत परी भी उससे प्रेम करती है या नहीं ,उसके प्रेम के प्रति इतना लिप्त हो जाता है कि अपनों को भी भूलने लगता है। अपने कर्तव्य को भुलाकर वह प्रेम में अपने आप को भी भुल जाता है।उस  चिड़िया को अपना बनाने का स्वप्न देखने लगता है।

चिड़िया किसी चिडे से प्रेम करती थी, और वह चिड़ा भी उससे उतना ही प्रेम करता था।

जब परिंदे को मालूम चला  बहुत उदास हुआ और रोया , पहली बार अनजाने शहर में किसी अनजाने से बिछड़ने का दर्द उसे मेहसूस होने लगा, उसे अनजाने में ऐसे शख़्स  से प्रेम हुआ जिसे सिर्फ वो बेहिसाब चाह सकता था पर पा नहीं सकता।

वो बहुत उदास रहने लगा, चिड़िया से मिलना भी बंद कर दिया ,और मन ही मन असहनीय पीड़ा का अनुभव करने लगा,वह इकतरफा प्रेम में जलने लगा।

प्यार का एहसास दुनिया में सबसे खूबसूरत होता है। प्यार में पड़ने के बाद हर कोई खुद को खुशनसीब समझता है लेकिन जरूरी नहीं कि आप जिससे प्यार करें वो भी आपसे प्यार करे।

असल में, एकतरफा प्रेम के दर्द को खत्म करना बहुत ही मुश्किल होता है खासकर उस “आशा” को बुझाना मुश्किल है कि किसी दिन सामने वाला व्यक्ति भी अपनी भावनाओं को आपसे साझा करेगा।

इसी इकतरफा प्रेम में पड़ कर  परिंदा असीम भावात्मक दर्द को महसूस करता है-

भावनात्मक दर्द, एक टूटे रिश्ते से या किसी प्रियजन की हानि से, मानव मस्तिष्क के उसी हिस्से को शारीरिक दर्द के रूप में सक्रिय करता है। सरल शब्दों में, शारीरिक दर्द से कही जयादा, भावनात्मक दर्द बुरा होता है।

इक दिन  चिड़िया परिंदे के पास आयी  और उसके इस हालात का वजह पुछा। परिंदा चाह कर भी उसे कुछ नहीं बता पाया। वह चिड़िया को बहुत प्रेम करने लगा था,और उसे कभी आंशू नहीं देना चाहता था।इस लिए मुस्कुरा कर चिड़िया के  सवाल को टाल देता है,

इधर चिड़िया इस बात से अनजान होती है, कि परिंदे के इस हालात का वजह उसके प्रति परिंदे का इकतरफा प्रेम ही है। और वो वापिस लौट जाती है।

परिंदा अपने अतित को याद कर बहुत रोता है, उसने कभी सोचा भी नहीं था कि दाने की तलाश में परदेश में आयेगा और उसके साथ ऐसा कुछ होगा।

परिंदा बहुत सोचने के बाद इस निर्णय पर आता है,कि वो चिड़िया के खुशी के लिए खुद के ख्वाहिश का त्याग कर देगा, और उसकी यादें लेकर अपना देश वापस लौट जायेगा।पर जाते- जाते चिड़िया को कुछ यादगार के रूप में कुछ देना चाहता है, तभी पतंग को देखकर चिड़िया के मन में उठे ख्वाहिश का ख्याल आता है।

उसका प्रेम अब दिव्य प्रेम का स्वरूप बन जाता है।

प्रेम तो प्रेम है यह कभी भी किसी से भी हो सकता है,

प्रेम के तीन प्रकार होते है।

१-प्रेम जो आकर्षण से मिलता है।

२-प्रेम जो सुख सुविधा से मिलता है।

३-दिव्य प्रेम।

प्रेम जो आकर्षण से मिलता हैं वह क्षणिक होता हैं क्युकी वह अनभिज्ञ या सम्मोहन की वजह से होता है। इसमें आपका आकर्षण से जल्दी ही मोह भंग हो जाता हैं और आप ऊब जाते है। यह प्रेम धीरे धीरे कम होने लगता हैं और भय, अनिश्चिता, असुरक्षा और उदासी लाता है।

जो प्रेम सुख सुविधा से मिलता हैं वह घनिष्टता लाता हैं परन्तु उसमे कोई जोश, उत्साह , या आनंद नहीं होता है। उदहारण के लिए आप एक नवीन मित्र की तुलना में अपने पुराने मित्र के साथ अधिक सुविधापूर्ण महसूस करते है क्युकी वह आपसे परिचित है। उपरोक्त दोनों को दिव्य प्रेम पीछे छोड़ देता है। यह सदाबहार नवीनतम रहता है। आप जितना इसके निकट जाएँगे उतना ही इसमें अधिक आकर्षण और गहनता आती है। इसमें कभी भी उबासी नहीं आती हैं और यह हर किसी को उत्साहित रखता है।

सांसारिक प्रेम सागर के जैसा हैं, परन्तु सागर की भी सतह होती है। दिव्य प्रेम आकाश के जैसा हैं जिसकी कोई सीमा नहीं है।

इसी दिव्य प्रेम में  ज्वलित परिंदा अपना सर्वस्व त्याग कर अपने आप को प्रेम को समर्पित करने के लिए अग्रसर होता है।

इक दिन परिंदा सोचता है और ठान लेता है,कि आज  वह उस उडती हुई चीज को  स्पर्श कर  उसे   अपने प्रेम को उपहार स्वरूप देगा ,और  उड़ती पतंग को लेने के अपने पंख को फैला कर  उड़ जाता है ,और पतंग को स्पर्श करने की चेष्टा करता है ।

पर पतंग की तीखे मांझे में फंस जाता है,वह पूरी ताकत से  संघर्ष करता है और उसके पंखुड़ि और वक्ष मांझे के धार से कट जाते हैं,

यह इक उत्कृष्ट प्रेम है जहां प्रेम के इक ख्वाहिश के  लिए परिंदा अपने प्राणों की भी परवाह किए बगैर उस पतंग को पाने के लिए भिड़ जाता है।

अंततः पतंग को लेकर श्वेत आसमान से बदहवास गिर जाता है।

चिड़िया जब उसे इस हालत में देखती है तो घबरा कर आंख में आंशू   लिए इसका वजह पुछती है, परिंदा अब भी कुछ नहीं बोलता,फटे हुए पतंग और मांझे से लिपटे हुए शरीर को देख कर वो सब समझ जाती है,

अपने चोंच  से अपने सबसे अजीज दोस्त  के मुख में पानी देती है, यह सब देख अपने नेत्रों में असीम प्रेम और चेहरे पर मुस्कान लिए परिंदा इस शरीर को छोड़ चीर सागर में वीलीन हो जाता है।

प्रेम की ताकत अतुल्य है,इसी दिव्य प्रेम में समर्पित परिंदा , संसार के सामने उत्कृष्ट प्रेम का उदाहरण बन जाता है।

किसी महान पुरुष ने कहा है-

जब प्रेम को चोट लगती हैं तो वह क्रोध बन जाता हैं, जब वह विक्षोभ होता हैं तो वह ईर्ष्या बन जाता हैं , जब उसका प्रवाह होता हैं तो वह करुणा हैं और जब वह प्रज्वलित होता हैं तो वह परमान्द बन जाता है।


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Updated on June 23, 2020

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