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तुम आते जाते राहों में, इतना क्युं मुझे सताते हो।
मन के कल्पित भावों से,औरों को भ्रम में लाते हो।।
नीयत तुम्हारी ठीक नहीं, ऐसे क्या तुम कर जाते हो।
मुझे देख नैनों से अपने,प्रेम पाश फैलाते हो।
पर मैं ना इसमें फंसने वाली,ना हृदय कि आशा व्यर्थ करो।
तुम कभी तो मेरी बात सुनो।।।
हे पथ गामिनी मेरी बात सुनो, क्यों शब्दों की बाण चलाती हो।
क्यों कर आघात हृदय पर मेरे, कुटिल सी तुम मुस्काती हो।
देदो अधिकार सताने का,बस इतनी सी एहसान करो।
तुम कभी तो मेरी बात सुनो।।।
मैं तो ठहरी फूल कली सी, मेरा क्या साथ निभाओगे।
कर के तुम रसपान यहां, तुम भंवरा बन उड़ जाओगे।।
हट कर भंवरों की टोली से, कभी माली बन सम्मान करो।
तुम कभी तो मेरी बात सुनो।।।
सच कहती हो माली तो, बगिया का भाग्य विधाता है।
वह अपने नित कर्मों से,एक पिता का फर्ज निभाता है।
मेरे पग-पग में संगीत भरा,मैं गीत प्रेम का गाता हूं।
चुम्बन कर तेरे होंठों पर, इक कली से फूल बनाता हूं।
मैं पागल प्रेमी भंवरा हूं,प्रिय मेरा तुम संगीत सुनो।
तुम कभी तो मेरी बात सुनो।।।
दीपक की अभिलाषा का, वह ज्योति कहा से लाओगे।
जब पत्थर मैं बन जाउंगी,तो जान कहा से लाओगे।
उस पत्थर मृत मुरति की, कभी तो तुम आह्वान सुनो।
तुम कभी तो मेरी बात सुनो।।।
दीपक की क्या अभिलाषा है, मैं स्वयं प्रकाश बन जाउंगा।
पत्थर की उस मृत मुरति में, बन स्वयं जान बस जाऊंगा।
पर अपने अहं भावना का, कभी तो तुम परित्याग करो।
मैं लहरों की भांति प्रेम करूं, तुम सागर बन स्वीकार करो।
तुम कभी तो मेरी बात सुनो।।।
It's defines the condition of today's life.Everyone is busy in showing off noone does true love.
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Part of the Poetry collection
Updated on July 08, 2018
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