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बड़ी से छोटी और छोटे से बड़ी,
घर मे मंजरी की स्थिति थी ,
बड़ी विपदाओं से भरी।
भाई - बहनों की लड़ाई ,
जब भी होती,
गलती किसी की भी हो,
डाँट और मार तो उसे ही खानी होती।
बहन को कुछ कहे तो,
शर्म नहीं आती, बड़ी से हो ज़बान लड़ाती।
भाई को गलती पर मारे तो,
देखो छोटे पर ,
कैसे है धौंस जमाती।
क्या करें, क्या न करें,
कुछ समझ नहीं है आता।
मंजरी को मंझली होने पर,
बड़ा रोना है आता।।
वैसे मंझली होने के,
फायदे भी हैं बड़े,
माँ - पापा को उसके कपड़े,
कभी खरीदने नहीं पड़े।
बहन के कपड़ो को वह भी,
बड़े चाव से पहनती,
बड़ी के हर नए कपड़े पर,
नज़र है उसकी रहती।
छोटे को इस बात से,
बड़ी ही कोफ़्त होती,
उसके कपड़ो की ,
गिनती जो थोड़ी होती।
मंजरी ने मंझली होने का,
और भी फायदा है बहुत उठाया।
बड़ी बहन और भाई को,
माँ से न जाने कितनी बार पिटवाया।
मंजरी की छोटी बड़ी भूल को,
बड़ी ने हजारों दफ़ा माफ़ किया।
उसके दिमाग मे जमी धूल,
और मन के मैल को,
बड़े प्यार से साफ किया।
भाई के नटखटपन पर ,
हंसी है बड़ी आती।
छोटी बहन होती तो,
इन क्षणों का आनंद कैसे उठाती।।
बचपन की ये खट्टी - मिठी यादें,
आज भी मन को महका जाती है,
होठों पर हल्की सी मुस्कान,
और आँखों मे नमी आ जाती है।
छोटा हो या बड़ा ,
बस रिश्तो की अहमियत है होती ।
इन प्यारे प्यारे रिश्तों के बिना,
ये जिंदगी इतनी खूबसूरत न होती।
ये जिंदगी इतनी खूबसूरत न होती।।
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Part of the Poetry collection
Updated on August 19, 2019
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