Are you sure you want to report this content?
नारायण। नारायण।
नमस्कार माते! मैं कितना खुशनसीब हूँ कि मुझे दीपावली के शुभ पर्व पर आप के दर्शन हो रहें हैं और आशीर्वाद भी मिल रहा है॥
लक्ष्मी माता: लो नारद फल खाओ॥
नारद: मैं तो धन्य हो गया आप के हाथ से प्रसाद पाकर॥
लक्ष्मी माता: अच्छा चापलूसी छोड़ो और ये बताओ ब्रह्मा जी ने दीपावली पर मेरे लिए क्या उपहार भेजा है॥
नारद: पिता जी बोले वह खुद आएंगे आप के दर्शन करने। पर माते एक बात बताओ आज तीनो लोक आप को पूज रहें हैं और आप यहाँ फल काट रहीं हैं ।व्यंजन पका रही हैं किसी दास को क्यों नहीं बोला माते ॥
लक्ष्मी माता: पुत्र नारायण के लिए मैं स्वयं खाना बनाती और परोसतीं हूँ । जो कि हर स्त्री का धर्म है अपने पति परमेश्वर के प्रति ॥
उसी वक़्त नारायण कक्ष में प्रवेश करते हैं और पूछते हैं कैसे आना हुआ नारद ऋषि॥
नारद: मैं आपसे शुभ दीपावली पर आशीर्वाद लेने आया था की क्या देखता हूँ लक्ष्मी माता स्वयं ही आप के लिए खाना बना रहीं है। जब की पूरी धरती लक्ष्मी माता को प्रसाद खिलाने के लिए बेचैन हो कर पूजा कर रही हैं॥
नारायण: जो लक्ष्मी जी की इच्छा मैं इनके घर के काम काज मैं दखल नहीं देता॥
लक्ष्मी माता: प्रियवर आप जल्द भोजन ग्रहण करें फिर मुझे धरती पर भक्तों के मिलन के लिए भी जाना हैं॥
नारायण: हाँ वसुधा आज तो तुम्हारा दिन है सब तुम्हे ही पूजते हैं॥
लक्ष्मी माता: लक्ष्मीपति आप को भी भक्त ज़रूर पूजते हैं॥
नारायण: प्राणेश्वरी मेरे कहने का तात्पर्य है कि आज तो भक्त तुम्हें पूजते हैं। मेरा क्या है मुझे तो सारा साल ही पूजते हैं॥
लक्ष्मी माता: नारायण मैं आप से सहमत नहीं हूँ क्यूंकि आज के समाज में सभी भक्तजन पूर्ण वर्ष मेरी ही कामना करते हैं॥
नारायण : लगता है नारद ने अपना कार्य पूरा किया। आप के भीतर ईर्ष्या की ज्वाला को अग्नि देकर॥
लक्ष्मी माता: बैकुंठ ! मैं यह कहना चाहती हूँ। नित्य प्रतिदिन लोग पूजा के बाद लक्ष्मी की ही कामना करते हैं तो फिर मेरी ही पूजा हुई ना॥
नारायण : मेरी प्रिय लक्ष्मी तुम अभिमान मैं चूर हो कर ऐसी बात कर रही हो आज तो तुम पहले धरती पर दीपावली के लिए जाओ पर, प्रिय वाचि मैं आपको एक सप्ताह के बाद सिद्ध कर दूंगा कि पूजा तो मेरी यानी नारायण की ही होती है पूरा वर्ष॥
लक्ष्मी माता: मैं हृदय से आपकी चुनौती को स्वीकार करतीं हूँ। जगन्नाथ और अगर मैं जीती तो मैं आप से एक उपहार अवश्य लूंगी॥
नारायण: पद्मा अगर मैं जीता तो पूर्ण एक वर्ष तक तुम मेरी कोई बात नहीं टालोगी॥
लक्ष्मी माता: हे वासुदेव पत्नी बात को टालती है तो उसका कारण पति के शुभ के लिए ही होता है॥
नारायण: हे स्वधा ! चलो इनाम का चयन प्रतियोगिता के पश्चात करेंगे॥
नारायण: हे सुरभि! वचन अनुसार मैं तुम्हे सिद्ध कर के दिखाऊंगा कि धरती लोक पर पूर्ण वर्ष भक्तजन मुझे ही पूजते हैं॥
लक्ष्मी माता: विष्णु देव मैं फिर प्रार्थना करती हूँ कि आप मान लें की आज का मानव धन का ही लोभी है॥
नारायण: सुधा आज नव वर्ष विक्रम सावंत २०७८ का आरम्भ है और गोवर्द्धन पूजा भी है। भक्त जनों ने मेरी पूजा भी प्रारम्भ करनी है इसी लिए मुझे आज्ञा दो॥
लक्ष्मी माता: हे हृषीकेश! आपके भक्तों में संतुष्टि और शांति कायम हों मैं प्रार्थना करती हूँ॥
भगवान नारायण ने एक साधु के रूप मैं एक गांव मैं सरपंच के घर में प्रवेश किया। प्रभु का सम्मोहित रूप देख कर सरपंच मंत्रमुग्ध होकर बोला: कहिये साधुजन मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ। नारायण बोले मैं एक सप्ताह की भागवत पुराण की कथा कहना चाहता हूँ। सरपंच ने कहा मैं कल से गांव में इसका प्रबंध करता हूँ। आप से प्रार्थना है कि आप कथा होने तक मुझ गरीब के घर मैं ही निवास करें । आप आज गोवर्धन पूजा पर मेरे साथ चलें ॥
संत के रूप मैं गांववासी स्वयं नारायण को देख कर गदगद हो गए ।अगले दिन से भागवत पुराण का पाठ प्रारम्भ हुआ कल्पना कीजिए कि भगवान स्वयं कथा कह रहे थे ॥
भक्तजनों का उन्माद देखते ही बनता था। दूर दराज़ के इलाकों से भी लोगों की भीड़ वासुदेव द्वारा कही भागवत सुनने के लिए चारों दिशाओं से उमड़ पड़े॥
नारद ऋषि ने सारा वृतांत माता को कह सुनाया और बोले माते लगता है आप प्रतियोगिता हार ही गयी ॥
लक्ष्मी माता भी कथा के पांचवें दिन उसी गाँव मैं एक भिखारिन के रूप मैं अवतरित हुई। देखा कि सब लोग पागलों की तरह भागवत कथा सुनने को भागते जा रहे थे। माता ने कई लोगों को रोक कर प्रार्थना की कि वो भूखी प्यासी हैं। कोई उनको जल पान करा दे॥
तो बहुत कठिनाई से बेमन से एक महिला ने उनको मटके से पानी दिया। माता ने जल ग्रहण कर पात्र गृहिणी को वापिस दिया तो वो सोने का गिलास बन चुका था। वो महिला कथा भूल लालच वश बोली आप कृपया रुकें मैं आपको भोजन किये बिना नहीं जाने दूँगी। क्यूंकि उसके मन में ये स्पष्ट था की यह भिखारिन के हाथ पारस के हैं। जिस बर्तन को हाथ लगाएगी वो स्वर्ण धातु का हो जायेगा। माता बोली मुझे कोई जगह ध्यान करने की दे दो बेटी और तुम कथा सुन कर आओ॥
गृहिणी माता को अपने खेत में बने छप्पर के नीचे बैठकर कथा में चली गयी। अब उसका मन कथा में कहाँ लगना था। उसने अपनी सखियों को सारी बात बताई। सब सखियाँ कथा छोड़ कर खेत में तरह तरह के व्यंजन ले कर आ गयी॥
माता कभी ध्यान से उठती तो किसी के बर्तन से मीठा खा लेती या कुछ फल ले लेती। इनाम वश उन बर्तनों को सोने धातु का कर देती। रातों रात ये बात पूरे इलाके में जंगल की आग की तरह फैल गयी। सुबह तक सब लोग माता के चरणों में पंक्ति लगा कर बर्तनों में व्यंजन और जल के लोटे लेकर बैठ गए॥
कथा समाप्ति के एक दिन पहले यानि छठे दिन नारायण की कथा सुनने के लिए एक्के दुक्के ही भक्त थे। और बाकि सब माता के चरणों में विराजमान थे॥
नारायण समझ गए की माता लक्ष्मी अब मुकाबले में आ चुकी हैं। उन्होने सरपंच को कहा कि कल भोग समापन के समय सब लोगों का आना अति आवश्यक है। सरपंच भी उत्सुकता वश माँ के दरबार मैं पुँहच गया। और देखा कि जो भी लोग माता को जलपान करा रहे थे वो सोने के बर्तनों का वरदान पा रहे है॥
सरपंच ने भी लालच वश माता से गुहार लगायी की उसके घर भोजन के लिए चलें। माता बोली वो एक शर्त पर जाएँगी किअगर वो उस संत को अपने घर से निकाल बाहर करेगा॥
माता सरपंच के साथ उसके घर को चल दी। सरपंच ने जाते ही संत रूपी नारायण को बोला वो कृपया धर्मशाला में रहने का प्रबंध करें। उसके घर में उनका अब कोई स्थान नहीं हैं। माता ने आदेश दिया कि वो संत से अकेले में बात करना चाहती है॥
माता: हे केशव अब आप को ज्ञात हुआ ही की इंसान कितना बदल गया है। वो सिर्फ धन का लोभी है। इसी लिए लक्ष्मी यानी मेरा ही वरदान मांगता है। उसको पारिवारिक सुख शांति की कोई चिंता नहीं हैं॥
नारायण: हे विभा! आप जीत गयी। मैं अपनी हार स्वीकार करता हूँ। लोग अब तुम्हारी ही पूजा करते हैं॥
माता: हे श्रीधर आप का अनुमान फिर सत्य नहीं हैं। आप के बिना मैं अधूरी हूँ। हम दोनों मिल कर ही पूर्ण होते हैं॥ आपके बिना मेरा कोई आस्तित्व ही नहीं है ||
अगले दिन लक्ष्मी और नारायण ने भागवत पुराण का समापन किया। माता ने प्रवचन दिया की आप सब लोगों को अगर धन सुख शांति की कामना करनी है तो आप को सर्वप्रथम लक्ष्मी की पूजा करनी है और उसके साथ आप को नारायण की भी पूजा करनी अनिवार्य है। तब जाकर आप की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी॥
सभी भक्त जनों ने मन्त्र मुग्ध हो कर पुकारा लक्ष्मी नारायण की जय॥
© Pavan Datta
आभारी: प्रेरणा जी
Always indebted to My Parents (My GOD & GODDESS)
809 Launches
Part of the Life collection
Updated on November 07, 2021
(1)
Characters left :
Category
You can edit published STORIES
Are you sure you want to delete this opinion?
Are you sure you want to delete this reply?
Are you sure you want to report this content?
This content has been reported as inappropriate. Our team will look into it ASAP. Thank You!
By signing up you agree to Launchora's Terms & Policies.